पवन गुरु पानी पिता माता धरत महत , दिवस राति दुइ दाई दाया खेलै सगल जगत , चंगिआईआ बुरिआइआ वाचै धर्म हुदूर || करमी आपो आपनी के नेड़े के दूर , जिनी नाम धिआइआ गए मशक्कत घाल. नानक ते मुख उजले केटी छुटि नाल।
पवन गुरु पानी पिता माता धरत महत , दिवस राति दुइ दाई दाया खेलै सगल जगत , चंगिआईआ बुरिआइआ वाचै धर्म हुदूर || करमी आपो आपनी के नेड़े के दूर , जिनी नाम धिआइआ गए मशक्कत घाल. नानक ते मुख उजले केटी छुटि नाल। भावसार :पवन (वायु ,हवा )परमगुरु है ,जल पिता सदृश्य हमारा पालक है (जल से ही जीवन है ,आदमी भूखो रह सकता है चंद दिन ,लेकिन इसी अवधि में पानी के बिना नहीं ,जल ही जीवन है ),पृथ्वी हमारी पालक है अन्नपूर्णा माता है। पोषक है संवर्धक है। दिन और रात के बीच ये सारा प्रपंच सारी कायनात चल रही है ,सारी सृष्टि को यही दिन रात नचा रहे हैं।ये दोनों ही पहरुवे हैं संरक्षक है गार्ज़ियन है। इन्हीं की गोद में हम बे -फ़िक्र बने हुए हैं संरक्षित हैं। हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का वह (धर्म )साक्षी है उसी को साक्षी मान शुभ अशुभ उच्चारित होता है। अपने कर्मों से ही व्यक्ति उसके (वाहगुरु )के नज़दीक पहुँच जाता है कर्मों से ही दूर हो जाता है। जिसके कर्म शुभ हैं लोककल्याण कारी पुण्य हैं वह पास से भी पास है विपरीत कर्मी के लिए वह गुरु दूर से भी सुदूर ही बना रह...